The officer

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thee officer.. appears and re appears across the city, across the time, a modern man, a colonial residue.

लकड़ी के बल्ले डाल कर उनके बीच तार का जाल डाला है, इस छोटी पहाड़ी की ढलान पर बिछी घास का एक हिस्सा पाँच फीट की त्रिज्या के बल्ले और तारों वाले वृत्त ने घेर लिया है. उन तारों पर अपने को बार बार पटक रहा है वो बारा सिंगा बालक, और तारों के बारीक जाल पर उसके सुंदर बदन का लगना ही उस बालक की वेदना की आवाज़ है. मेरे बगल में खड़ा फोरेस्ट डिपार्टमेंट का कोई छोटे वर्ग का कर्मचारी है, उसके भूरे थके चहरे पर लगी मैली झील पर तैरती पुतलियाँ इस दृश्य पर मेरी पुतलियों सी लगी हुई हैं, हटती ही नहीं. हम दोनों शायद उस बच्चे के अद्भुत सर से जुड़े टहनीयों के जाल से फैले मुकुट को देख देख कर दर रहे हैं.. कारावास से परेशान वो बच्चा बार बार उनकी परवाह ना कर कर अपने बदन को दे मारता है, और हमारी कमज़ोर आँखें सहम जाती हैं. उस बालक के लिए वो उसके अंग का हिस्सा हैं, हमारे लिए शायद एक सुंदर आभूषण सामान. "कल रात को जंगल से भटक कर बाहर आ गया था" मैं उसकी बात सुनते सुनते ढलान से उतरते बैरा पर नज़र रख रहा हूँ. अँग्रेज़ों की ज़माने की पोशाक, जो कुछ मैली पद गयी है, हाथ में ट्रे, ट्रे पर फ़्लास्क और कुछ कप.. छाई का ट्रे मेरे पार .. मैं हिरण छोड़ कर आगे बढ़ता हूँ (उसको खड़े खड़े देख ही सकता हूँ.. और देखा भी नहीं जाता). गेस्ट हौस के गेट की ओर चलता हूँ. गेट के पार लाँ में दूसरा चित्र. साहब, बेंत की कुर्सी पर बैठे, काँच की मेज़ पर रखे काग़ज़ पढ़ रहे हैं,एक हाथ में पेन है. बगल में अरदली खड़ा है, हाथ पीठ के पीछे.. ( यह भी कोई ख़ास मुद्रा होगी). बैरा चाइ साहब के सामने रखता है, मैं सोचता हूँ बाहर आएगा तो मैं भी उस से चाय माँगूँगा.. छोटे कमरे में सही, पर मैं भी इस ही गेस्ट हाऊज़ में रहता हूँ. साहब के पार हरे रूमाल सा लान है. हरी घास की कालीन पर पाँव डाले,