Disorderly ageing

From PhalkeFactory

शहर की कॉलोनी. रुमाल से प्लाट पर सजे हुए घर, घरों के बीच तुम नये, अंजान, तुम्हारा दिल हर बार दहलता तो है. पहले दिन चलो तो गेट पर लेती हुई अड़ेद उमर की थकी आँखें तुम्हें तकती है, बोलचाल में विराम तुम हो, होंठ दबाए सड़क पर चुपचाप गुज़रने की नायाब कोशिश करते हुए. तुम गाते बँधे रिश्तों के इन घरों की रंगोली का एक सुंदर अंश कहीं से नहीं लगते और कुछ दिनों हर बार मुझे यह बेवकूफ़ सा दर लगा रहता है, कहीं मालिक मकान हूमें निकाल बाहर तो ना करेंगे? हमें किससी तरह शर्मिंदा होना ही होगा, यह डर पारानोईया सा मन को चूहे सा कुतरने लगता है. सड़क पर खेले बच्चों की नज़र भी कैसे घूरती सी है और फिर अचानक तुम्हारे चहरे से फिसल कर, फिर लौटती है, और तुम वापस घूर तो बिल्कुल नहीं पाते, उल्टा फिर वो शरम सी तुम्हें सताने लगती है. चाँद के चड़ते चड़ते वेताल के जंगल के कई सारे भूत तुम्हारे फेफड़ों में बस कर तुम्हारी साँसें दबाने लगते हैं. पेरनायिया, म कहता है, हाँ, पहचाने संदर्भों में विपरीत पहचान ले कर बसने का पारानोइया. जब घड़ी भर तुम भी चाहते हो की तुम्हारे पास गाड़ी होती, यह परिवार वालों का संतुलित सा गाड़ियों से उतरना चढ़ना, यह बच्चों की दुनिया का बढ़ा होना. जिसमें शाम को तुम भी अपने किससी बचपन के दोस्त के साथ, सैर करते हुए, गुरखा रेजिमेंट की बातें कर सको, या रिजर्व बॅंक की.. आज शाम को मैं फिर छोटी सी सैर पर निकला, चार दिन बाद, और आज, उन्हीं सड़कों पर, पएधों से गिरे फूलों की सड़क पर लड़की स्कूटर पर बैठे बतिया रही थी, उसने मेरी ओर देखा भी पर मुझे परेशानी नहीं हुई, क्या उसकी नज़र अलग थी. ऊपर बालकनी पर कपड़े की गठरी पर छोटा सा बुढ़िया का सर मुझे देख कर बाँये से दाएँ बंडल पर हौले हौले घूमा, तो मैं आयेज बढ़ते हुए उस गठरी पर सर के घूमने को ही देखता रह गया. उसकी बूढ़ी आँखों का काजल, उसके चहरे का मुखौटा, सब दिखा पर वो गर्दन का घूमना ही याद रहा.