Childhood Prabhakar

From PhalkeFactory

नीलकंठ ज़मीन पर खेल रहा था.. क्या उमर होगी, कुछ दिनों में एक साल का होने वाला था.. ज़मीन पर एक छोटी कड़ाई पड़ी थी, जिस से मंदाकनी खेल कर उठी थी. मोटे फूलों की माला का एक एक फूल तोड़ कर, हर पंखुड़ी को अलग कर के, ये पकवान चमच्च सहित छोड़ कर भाग गयी थी. नीलकंठ चारों पैरों के बल आया, एक टाँग घसीटता हुआ, ( उसकी यही आदत थी, शायद यह टाँग कमज़ोर थी). उसने चमच्चका एक कोना पकड़ा और हाथ उठाया तो चमच्च के भार से हाथ हिला, नीलकंठ का मुँह एक सेकेंड खुला, फिर उसने हाथ और ऊपर किया, चमच्च हाथ सहित उठ गया ! होंठ फिसले, फैले तो दो नये दाँत चमके: अपने ध्वज को देखकर बालक खुशी से मुस्कुरआया.

मुड़कर पीछे देखा. ज़मीन पर पुराने कपड़े की चोटी पड़ी थी. नीलकंठ की नज़र अब वहाँ गयी. उसे अपनी ओर घसीटा. मुख पर ध्यान मुद्रा लौटी, मुँह खुला, पुतलियाँ तैरती हुई नीचे की ओर भागीं. भूरे हाथों के छोर पर गोरी हथेलियाँ चमक रही थीं, खुली हथेलियाँ फूल सी बंद हुईं , नाडे को पकड़ कर आगे की ओर खींचा, छोटी नदियों से फैली पालती मारे जांघों के पार . बालक ने नाडे का सर उठा कर देखा . फिर अपना सर पीछे घुमाया.. जहाँ नाडे की पूंछ पीछे पड़ी दिख रही थी. सरस्वती ने देखा कैसे बॉल कृष्णा साँप से उलझा हुआ था.

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