Lala deen dayal

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मेरठ के पास सरदाना का लड़का था.. उमर होते होते चहरे पर सफेद धब्बे लग गये थे. केवल एक फोटो थी, धूप छाँव से खेलती. प्रिंट पर हल्का रंग डाल कर धब्बों को ढक दिया था, ध्यान से देखो तो कान के ऊपर, और कान की छाँव में निशान था. एक बार अँग्रेज़ राजा लोगों की तस्वीर खींच ली, फिर तो यश ही यश मिला और काम ही काम. अँग्रेज़ों की जागीर भर में घूमने को मिला. कोई एक गोरा मध्य भारत की इमारतों पर किताब लिखना चाहता था, ये उसके कारवाँ से जुड़ गया. ओरछा, झाँसी, के आस पास, खंडहर , महल, टूटे हिंडोले, सबकी तस्वीर ली. जैसे पन्ने पर कभी कभी लिखाई ऊपर की ओर चढ़ती है, वैसे समय समय पर इसके फ्रेम में इमारतें. आसमान हमेशा सॉफ होता था, फोकस आगे की ओर होता था, कभी पानी पर, कभी पत्थर पर, पीछे इमारत के आकार में पानी के रंगों का धुँधलापन और उनकी कोमलता दिखती थी. आगे, सबसे स्पष्ट, अंधेरे. सूखी लंबी घास, पत्थर.. \ पानी पर पत्थरों की एक शृंखला थी, उनपर सूखीी घास थी, पीछे, पानी के पार, चार इमारतें, जो आसमान की ओर चड़ती दिखाई दीं. पर धूमिल रंगों की स्लेट पर, पत्थर, उसपर सूखी लंबी घास, पानी पर उनका प्रतिबिंब, मिलकर सूखे मज़बूत बालों वाली एक विचित्र मछली बन गये थे. एक ऊँची चट्टान नाक सी चौड़ी, उसके खुले हुवे विशाल होंठ.. चट्टान के कहीं नीचे, छोटी छोटी दो गोरी मेम, उनपर पढ़ती धूप, वो हँसती हुईं. उनके नीचे फिर गहरी छाँव का अंधेरा.. और नीचे, उस पहाड़ी के तले धूप फोटो के सिल्वर आइयडाइड पर यून बिछी है कि मट्टी के सूखे कण तरल हो गये हैं, घास उनपर सपने में तैरती दिखती है.