तीस एप्रिल यहाँ
From PhalkeFactory
←Older revision | Newer revision→
मैदान में फाल्के की सालगिराह को लेकर एक 'अर्बन रीचूअल' मनाया जाता है. एक बड़ा चौकोर गुब्बारा आसमान में छोड़ा जाता है, कहते है यह फाल्के का स्टूडियो है.. (तो आसमान में क्यों उड़ता है?) भरा हुआ मैदान था, और फेरी वाले भी छोटे चौकोर गुब्बारे बेच रहे थे. किसी पांडुलिपी की बात कही थी उस फाल्के के ग्यानि ने..कोई खोई हुई किताब जो फाल्के के बच्चों के अनुसार, उनके पिता ने उनके लिए लिखी थी ( यह मिला है उन बच्चों से, उनपर फिल्म बनाई है).. और यह गुब्बारे? मैने पूछा. वो जैसे खुश हो गया. बोला- अरे- यह तो- मेरी एक कहानी हैं. मतलब?
मैने एक कहानी लिखी थी, नहीं, मैने एक छवि देखी थी- फाल्के का पुत्र, बबराया, हनुमान की पोशाक पहने ( फाल्के के बच्चे उसकी मिथोलाजिकल फिल्मों में काम करते थे), तो हनुमान बना बबाराया अपने पिता का स्टूडियो एक हाथ में उठाए उड़ रहा है. और स्टूडियो के अंदर फाल्के उस पांडुलिपि की रचना कर रहा है. यह 1918 की इमेज थी मेरी कहानी में. फाल्के को काम नहीं था, बिज़नेस चौपट हो गया था, वो स्टूडियो की दीवारों में सिमट गया था. बच्चों को पिता के दर्शन हुए.. अगर यह तुम्हारी कल्पित छवी है, तो यहाँ- ऊपर कैसे पहुँची? उसकी आँखों में नरम खुशी दिखी मुझे, और खुली हथेलियों में अचरज.. "सचमुच, पता नहीं". [1]