PHALKE STORIES

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स्टेज पर बहुत से पात्र मेकप कर रहे हैं. दादा मंचन चिपकाने में लगे हैं. कुछ लोग मूँह पर पॉवडर पोत रहे हैं. औरतों का काम करने वाली साड़ी बँधवा रही है. एक तंडोरे का तार कस रहा है. जहाँ तहाँ अरजक्ता और मस्ती है. त्तीसरी घंटी बजते ही परदा नीचे उठता है. तभी कंपनी का मालिक संगीत राव अचानक तीएटर में प्रवेश करता है. यात्रा की पोशाक पहने एक हाथ में हॅंड बाग और दूसरे में ओवरकोट है. पीछे हमाल सर पर होल्ड ऑल उठा कर. संगीत राव परदा खींचता है, भड़कता है.


स.र. गणपति, खेँचो ऊपर. एक दम ऊपर जाने दो.

(कलाकार उसे परदा नीचे लाने को कहते हैं.)

स.र.: नीचे नहीं. पेपर में आड के मुताबिक बारोबार साढ़े आठ बजे परदा ऊपर जाना चाहिए. बिल्कुल ठीक टायम. ८.३० शार्प.

आक्टर: हमें कम से कम दस मिनट..

स.र.; नेवर

भिक्षुक स्त्री: सूत्रधार के प्रवेश की तैयारी में पाँच मिनट हैं.

स.र.: वोन्त डू सूत्रधार . सूत्रधार: थोडा बाकी है. तंबोरे की तार भी चढ़ानी है.

स.र.: नहीं माँगता.

एक आक्टर: दो मिनट, मैं मूछ चिपका लेता हूँ. नहीं तो चार लोगों में हसीं हो जाएगी

श.ऱ. ज़रूर होनी चाहिए.

दूसरा: जैसे आपकी मर्ज़ी. मान अपमान वग़ैरह जो गुप्त बातें हैं, प्रकाशित नहीं होनी चाहिएं. ऐसा शस्त्रा कहते हैं. आयुषये ग्रिह.

स.र.: ऐसी कहावतें मुझे सेंकडो आती हैं. तुम लोग तमाशा बनो ऐसी मेरी इच्छा नहीं. क्यूंकी तुम्हारा तमाशा मानो मेरा ही तमाशा होगा. और हर वक्त तुम्हारा कुछ ने कुछ रोना है. बड़े बड़े अक्टर तैयार हैं.. किंतु यह चिल्लर पिल्लर -लाखू! तू अब तक तैयार क्यों नहीं हुवा है?

भेलु: मैं बताता हूँ मैं तैयार क्यों नहीं हुवा...इसे हम लोग ने अभी नींद से जगाया है. मेक अप रूम में, गेट के सामने हमें कम से कम दस मिनट..

स.र.: नेवर.

-विश्वामित्र नहीं आए हैं अब तक.

संगीत राव का ध्यान ऊपर चोली और नीचे चॅडडी पहने हुवे आक्टर की तरफ जाता है.

स.र.: अन्नआ जी, अभी तक आप ऐसे हैं?

-मेरी साड़ी गोपिया ने पहनी थी.

गोपिया: ग़लती से पहन ली थी साहेब. लेकिन काफ़ी पहले लौटा दी थी.

संगीत: पहले बताओ के मेक अप रूम छोड़ कर स्टेज पर क्यों कपड़ा बदल रहे हो?

- वहाँ पसीना है, बदन कपड़े सब भीग गये.

स.र.: तीएटर नहीं तबेला लगता है. फिर भी बाकी से ठीक है. अब अड़ गये तो करना तो पड़ेगा ही. दो चार शो करना है बस. हमारे मॅनेजर नहीं दिख रहे.

प्रभाकर: वो मेक अप रूम में चिवडा खाते बैठे हैं.

स.र.: और सेक्रेटरी भीकाजी राव क्या कर रहे हैं?

-वो उस कोने में वेणु को साड़ी पहना रहे हैं और गुदगुदा रहे हैं.


रामू: और उसकी पप्पी के रहे हैं. चिल्लाता है तो उसकी जेब मैं एक पैसा डाल देता है. मुझे भी इस ही तरह करते हैं.

स.र.: पंत, अजी भीकाजी पंत, नाना, अजी भीकाजी नाना, यह मानजमंट है या संगीत राव की इज़्ज़त का फलूदा. आप पर पूरा थीएटर सौंप कर दो तीन दिन के लिए बाहर गया के सब गड़बड़ कर दिया. बड़ी हिम्मत दिखाते थे मेरे बगैर थीएटर चलाने की. (तभीएक नौकर एक चिट्ठी देता है.) क्या कहने! इतना प्रेम की अभी इस ही वक्त मिलना है?? और वो भी स परिवार. मित्र प्रेम. ये दो पास उनके सर पर पटक आ. (दूसरा नौकर दौड़ कर पैरों पर गिर पढ़ता है. ) "वॅन्स मोर' सप्पलाई कंपनी! नहीं चाहिए भाड़े की तालियाँ. नहीं चाहिए भाड़े के रिव्यू. धर्मार्थ खेल याचक समाज. बहुत खूब, हमारा नाटक खेल का कारखाना नहीं है. अब क्या चाहिए?

-साब कोई बाहर..

स.र.: जा कर कहो संगीत राव को एक सौ पचास डिग्री बुखार है. सूत्रधार! बडोपंत खड़ो पंत. कमर पर हाथ रख के विठोभा बन कर क्यों खड़े हो??

खड़ो: साहब आज इसका फ़ैसला होना ही चाहिए

स.र.: कैसा फेसला?


-नाटक मैं पहले किसे पूजा जाए?

-पालनकर्ता विष्णु को? किंतु बन्दो पंत को विष्णु पर प्रेम आया है.

स.र.: आया होगा. कींटो आज कवि ने देवी जी की प्रार्थना लिखी है.

बडो पंत: साहब मुझे माफ़ कर दीजिए. मैं अपने शंकर का अपमान नहीं सह सकता. महादेव यदि क्रोधित हुए तो सारे ब्रह्मांड को भस्म कर देंगे. खड़ो पंत, अब आप ही बतायें, शस्त्रा अनुसार विष्णु से..

-साहेब नाटक में घुसा ये कल का छोकरा.. मैं पिच्छले बारह साल से हवा देती दासी का काम कर के इस पद पर पाहूंचा हू जब तक ये मेरी बात नहीं मानेगा मैं इस जोड़ी मैं काम नहीं करूँगा.

-ये होगा अनुभवी साहब, लेकिन केवल स्त्री पात्रा में.. मुझे करीब तीन साल हो गये, बाईस बार राजा बना हूँ, नो टाइम रानी, बारह बार दासी. चार बार खून किया नो बार दगाबाज़ी से मरा. चालीस टायम लड़ाई में काम आया. तीन बार ज्ज, दो बार शणकराचार्या, और एक बार तो लोकमानय तिलक भी बना.


स.र.: शाबाश, वीरों, इन झगड़ों फ़सादों, वाद विवादों से तो पहले ही हम गर्त में गये हैं. किसी शांत जगह जा कर फ़ैसला करो की कौन श्रेष्ट है. गेट आउट

(बहुत से कलाकार जाने लगते हैं.) मैं आज नयी तरह से मंगला अर्चना कराऊंगा, रंगदेवी!

एक लड़का: साहेब, वो ऊपरी मंज़िल पर बैठ कर रो रही है, तीन दिनों तक छूना माना है.

स.र.: सदा शिव और नटी, ना छूना. मैं तो झमेले में पड़ गया.

-उसके घर से खत आया है, किसी के मरने हा..

-ठीक है, अब में आप का ज़्यादा वक्त ना लूँगा.

माधुरी: मत लीजिए, ये देखिए, मैं हूँ यहाँ, आप आगया दीजिए और आशीर्वाद, मैं मंगाळाचरण करूँगी.

स.र.: अच्छी अर्धांगनी हो तुम..लेकिन जो काम तुमने नहीं किया, फिर कैसे??

- कैसे? हीरो हेरोइन के नाराज़ होते ही एक फिल्म निर्माता ने निर्जीव वस्तुओं को नचा कर किस तरह से लोक मनोरंजन किया था? और मैं तो आपकी सजीव अर्धांगिनी हुई,

स.र.: शाबाश, परमात्मा तुम्हारी मदद करे, यह काग़ज़ लो और विद्यहरण के पहले पद की चाल लगाकर गाना शुरू करो.

- क्या ब्रह्मदेव की स्तुती! आश्चर्या है!

-इस में आश्चर्य क्या? उस विस्वाकर्मा को इनवेंटर को प्रसन्ना कर लेना चाहिए.


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